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संपादकीय टिप्पणियां (संग्रामी लहर – जनवरी 2019)

संपादकीय टिप्पणियां (संग्रामी लहर – जनवरी 2019)

लोकतंत्र के लिए खतरनाक खिलवाड़ बने पंचायत चुनाव
पंचायत/ग्राम सभा लोकतांत्रिक प्रणाली की आधारशिला है। परंतु इस महत्त्वपूर्ण व बुनियादी संस्था के लिए होते चुनावों में धांधलियां बहुत होती हैं। इस दिशा में स्थिति दिन-प्रति-दिन बद से बदतर होती जा रही है। वैसे तो जनवादी मूल्यों का उल्लंघन संसद जैसे शिखर के संस्थान के लिए होने वाले चुनावों के समय भी होता है। पंरतु वे छिप-छिपाकर किए जाते हैं। जबकि पंचायतों के चुनावों में धांधलियां नग्न रूप में होने वाली काोर जबरदस्ती का रूप धारण कर जाती हैं। सत्तासीन पार्टियों के नेता विरोधी पार्टियों के पैर ही नहीं लगने देते।
यह धांधलियां वोटर बनाने व निर्वाचन क्षेत्र आरक्षित करने की प्रक्रिया के दौरान ही शुरू हो जाती हैं। स्थापित नियमों की सरेआम उल्लंघना की जाती है। ऐसे कुकर्मों में अफसरशाही सत्तासीन पार्टी के नेताओं की वास्तविक रूप में दासी बन जाती है। इस संबंध में अकाली-भाजपा शासन के दौरान उनके नेता चमड़े के सिक्के चलाते रहे हैं तथा अब कांग्रेसी नेताओं ने इन समस्त कुकर्मों को और आगे बढ़ाया है। पंजाब में 30 दिसंबर को होने वाले पंचायती चुनाव के संदर्भ में लोकतंत्र के लिए घातक इस घटनाक्रम का इजहार पहले से कहीं अधिक हुआ है।
शासक पार्टी कांग्रेस ने अपने चहेते उम्मीदवारों को जिताने के लिए विरोधी उम्मीदवारों की राह में हर तरह की बाधाएं खड़ी की हैं। कई जगहों पर उन्हें ‘आपत्ति मुक्ति प्रमाण-पत्र’ ही नहीं दिये गए। इसलिए बहुत सी जगहों पर विरोधी पक्ष के उम्मीदवारों का समय के रहते अपने नामजदगी पत्र दाखिल करवाने के लिए शपथ पत्र बनवाने पड़े हैं। इसके बाद उनके नामजदगी पत्र स्वीकृत करने, स्वीकृत उम्मीदवारों की सूचियां सार्वजनिक करने तथा चुनाव चिन्ह आबंटित करने तक हर स्तर पर जोर-जबरदस्ती व धोखा-धड़ी की गई है। इस तरह अनेकों स्थानों पर कांग्रेसियों ने अपने समर्थकों को निर्विरोध संरपंच/पंच घोषित करवा लिया है। ऐसे 150 मामले तो पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय तक भी गये हैं। जिनमें वहां तक जाने की हिम्मत नहीं थी, वे बेचारे खून का घूंट पीकर चुप हो गए हैं। न्यायालय के हस्तक्षेप के कारण कुछ अधिकारियों को मुअत्तिल तो किया गया है। परंतु इससे जिनके साथ वे अन्याय कर गए हैं, उन्हें तो न्याय नहीं मिला।
सत्ताधारियों की इस तरह की, जनवाद का कत्ल करने वाली कार्यवाही की उदाहरण है, जिला पठानकोट के गांव कटारूचक्क की पंचायत का चुनाव। यहां 15 वर्षों से सरपंच के रूप में लोगों की सेवा करती आ रही श्रीमति उर्मिला देवी, आर.एम.पी.आई. के प्रमुख नेता कामरेड लाल चंद की धर्मपत्नी है। उसके नामजदगी पत्र भी इस बार रद्द करवाने के लिए सत्ताधारी पार्टी के नेताओं द्वारा भरसक प्रयास किए गए। उनके पति के पंचायती जमीन पर काबिज होने के बारे में आधारहीन आपत्तियां लगाई गईं। जिसका कोई भी प्रमाण पेश नहीं किया जा सका। इसके बावजूद स्वीकृत नामजदगियों की सूची सार्वजनिक करने के प्रति रिटर्निंग अफसर द्वारा आधी रात तक टालम-टोल की गई। रात को सूची लगाने के बावजूद अगले दिन चुनाव चिन्ह देने से आनाकानी की जाती रही। इन स्पष्ट जोर-जबरदस्तिों के विरुद्ध ग्रामवासियों द्वारा आर.एम.पी.आई. के राज्य सचिवालय सदस्य कामरेड लालचंद कटारुचक्क तथा पार्टी के जिला अध्यक्ष कामरेड शिव कुमार के नेतृत्व में संबंधित कार्यालय के समक्ष निरंतर धरना  दिया गया। तथा अधिकारियों व उनकी पीठ पर खड़े क्षेत्र के विधायक के विरुद्ध निरंतर नारेबाजी की गई। तीन दिन के इस ठोस व निरंतर दबाव  के फलस्वरूप ही श्रीमति उर्मिला देवी की सरपंच पद के लिए उम्मीदवारी अंतिम रूप ले सकी। जबकि कांग्रेसी नेता नजदीकी कई गांवों जैसे कि सहौड़ां आदि के उम्मीदवारों के कागज रद्द करवाने या वैसे ही खुर्द-बुर्द करने में सफल हो गए।  क्योंकि वे उम्मीदवार ऐसा जन दबाव नहीं बना सके। इसमें कोई झिझक भी हो सकती है तथा भय भी। धरने पर बैठे कटारूचक्क वासियों के साथ भी सत्ताधारी पक्ष के बाऊंसरों द्वारा धक्का-मुक्की की गई, परंतु वे जनवादी सिद्धांतों पर खड़े रहे। सत्ताधारियों की इस तरह की जोर-जबरदस्तियों का मुकाबला केवल इस प्रकार की जन लामबंदी द्वारी ही संभव है। कानूनी प्रयास तो बहुत बार निरर्थक ही सिद्ध होते हैं।
यहां चितांतुर करने वाली बात यह भी है कि सत्ताधारी पार्टियों द्वारा चुनावों के समय की जाती ऐसी धांधलियों से आम लोगों के मन में केवल उनके प्रति घृणा ही नहीं बढ़ती, बल्कि लोकतंत्र के प्रति विश्वास भी टूटता है। जिससे अराजकतावादी तत्त्वों को उत्साह मिलता है। इसलिए सत्ताधारी पार्टियों के ऐसे गैर-कानूनी व जनवाद विरोधी घातक व्यवहार का वामपंथी शक्तियों को एकजुट होकर जोरदार विरोध करना होगा।      -ह.क.सिंह

दरुस्त है, नसीरूद्दीन शाह की चिंता
फि़ल्म अभिनेता नसीरूद्दीन शाह की अपने बच्चों की सुरक्षा के बारे में व्यक्त की गई चिंता आधारहीन नहीं है। और, न ही एक मनुष्य की हत्या की अपेक्षा गऊ हत्या को दिये जाते महत्त्व देने का उलाहना ही गलत है। पिछले साढ़े चार साल से असहनशीलता, फिरकापरस्ती, अंध राष्ट्रवाद व संघी सेना के हथियारबंद गुंडा गिरोहों द्वारा बेगुनाह लोगों की बेरोक-टोक की जा रही हत्याओं ने जो भय का  वातावरण कायम कर दिया है उसने अकेले अल्पसंख्यक मुसलमान भाईचारे के मन में ही डर और भय की भावना पैदा नहीं की, बल्कि बहुसंख्यक हिंदु समाज, जो आर.एस.एस. की संकीर्ण व नफऱत भरी विचारधारा को पसंद नहीं करते, ईसाई, दलित, औरतें, आदिवासी, प्रगतिशील व  न्यायप्रिय कलमकार और बुद्धिजीवी, सभी ही संघ की धर्म आधारित ‘‘हिंदु राष्ट्र’’ कायम करने के लिए की जा रही नफऱत भरी हिंसक कार्यवाहियों से परेशान और दुखी हैं। जिन 69 प्रतिशत लोगों ने पिछले संसदीय चुनावों में भाजपा का विरोध किया और बाद में पंजाब, कर्नाटक, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, झारखंड, तेलंगाना, मणिपुर, आदि प्रांतों में भाजपा को करारी पराजय दी है, वे प्रधानमंत्री और उनके सहयोगियों की ओर से धार्मिक कट्टड़वाद की आग उगलने के समर्थक कैसे हो सकते हैं? हिंदू धर्म के बहुसंख्यक अनुयाई समेत उत्तर पूर्वी, दक्षिणी, केंद्रीय और पश्चिमी भारत के बहुसंख्यक हिंदु समाज की खाने-पीने, पहनने, पूजा-पाठ करने तथा उनके दिलो दिमाग़ में उकरी देवी देवताओं की तस्वीरें संघ की मान्यता की अपेक्षा बिल्कुल भिन्न हैं। मनुवादी सामाजिक व्यवस्था, जिसे आर.एस.एस. सबसे श्रेष्ठ मानता है, ने सदियों से देश के सामाजिक तौर पर सर्वाधिक पीडि़त दलितों आदिवासियों के साथ अमानवीय व्यवहार किया है। ग़ुलामों, औरतों, पशुओं व दलितों को ‘‘ताडऩ के अधिकारी’’ बताने वाला दर्शन एक शिक्षित और प्रगतिशील समाज के मन को कैसे अच्छा लग सकता है ?
मोदी राज में दर्जनों प्रगतिशील और वामपंथ समर्थक बुद्धिजीवियों, पत्रकारों और समाजसेवकों की हत्याएँ हो चुकी हैं। इस कृत्य के सूत्रधार आर. एस. एस. से जुड़े संगठनों के कार्यकर्ता हैं, जिनकी तस्दीक भिन्न भिन्न अदालतों, खुफिया एजेंसियों व मनोनीत आयोगों ने अपनी रिपोर्टों में की है। पहले भी देश के प्रमुख नागरिकों, संवेदनशील सेना व सिविल सेवा के सेवामुक्त अफसरों ने इस सम्बन्ध में अपनी आवाज उठाई थी। अब यू. पी. में, जो हिंसा आतंक का नंगा नाच योगी आदित्यानाथ के राज में हो रहा है और  मुख्यमंत्री आप शरारती तत्वों को संरक्षण प्रदान कर रहे हैं। इसके बारे में उस राज्य के 83 सेवामुक्त अफसरों ने गंभीर नोटिस लिया है और मुख्यमंत्री के इस्तीफे की माँग की है। आदित्यानाथ योगी का यू. पी. का मुख्य मंत्री के रूप में चयन ही प्रांत में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने के इरादे से किया गया था ताकि भविष्य में होने वाले लोकसभा चुनावों में भाजपा को जिताया जा सके। देश की सर्वोच्च अदालत के चार जज साहिबान सार्वजनिक रूप में देश के लोकतांत्रिक ढांचे को पैदा हो चुके खतरे की गुहार लगा चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर्ड जज ने तो सुप्रीम कोर्ट के मामलों में बाहरी दबाव की बात भी जग ज़ाहिर की है। मोदी सरकार ने आर.बी.आई, सी.बी.आई., नीति आयोग, चुनाव आयोग और विश्वविद्यालयों आदि जैसी स्वायत्र संस्थाओं में सीधा हस्तक्षेप करके संघ की सांप्रदायिक योजना को सिरे चढ़ाने के लिए पूरी ताकत लगाई हुई है।
संघ के साथ जुड़ी धार्मिक एकत्रताओं व जलूसों को तो मोदी सरकार सरकारी खजाने में से भारी रकमें ख़र्च करके और समस्त  सरकारी मशीनरी को संघ की सेवा में झोंक कर, सफल करने का प्रयत्न करती है, परंतु देश के संविधान और कानून के अंतर्गत किये जाने वाले प्रगतिशील सांस्कृतिक कार्यक्रमों, नाटकों, सैमीनारों के आयोजन और कुछ प्रगतिशील अंशों वाली फिल्में के रिलीज होने पर संघी सेनाओं की ओर से खुले रूप में हुड़दँग मचाया जाता है। कानून-व्यवस्था की मशीनरी भाजपा शासकों के इशारों पर अराजकता फैलाने वाले तत्वों के हक में भुगतती है और या फिर चुपचाप तमाशबीन बनकर खड़ी देखती रहती है। हर रोज़ भाजपा नेताओं की तरफ से उत्तेजना और सांप्रदायिक तनाव पैदा करने वाले ऐसे व्क्तव्य दिए जाते हैं, जिनमें खुले रूप में विरोधी राजनीतिक नेताओं, धार्मिक अल्पसंख्यकों, दलितों और संघ का सैद्धांतिक विरोध करने वाले धर्म निरपेक्ष और लोकतांत्रिक कार्यकत्ताओं को धमकाया जाता है। परंतु ‘‘सत्ता’’ का चाकर बनकर देश का कानून सब कुछ देखता हुआ भी कान और आँखें बंद करके जि़म्मेदारी से मुंह फेर रहा है। देश में धर्म निरपेक्षता, लोकतंत्र, वास्तविक देशभक्ति, पड़ोसी देशों के साथ मित्रता पूर्ण सम्बन्ध कायम करके अमन और शान्ति के वातावरण का निर्माण करने के पक्ष में आवाज़ बुलंद करने को ‘‘देशद्रोही’’ कारनामा कहकर दबाने वाला वातावरण, उन सभी मूल्यों को तबाह कर देगा, जो आज़ादी संग्राम में जूझे देशभक्त योद्धाओं ने अपनी जानें न्यौछावर करके कायम किये थे। आज़ादी के बाद उनके पदचिन्हों पर चलकर ही भारत की एकता और अखंडता कायम रखी जा सकी है।
संघ परिवार की ओर से कायम किये जा रहे तनावपूर्ण सांप्रदायिक वातावरण के बारे में अकेले नसीरूद्दीन शाह या आमिर ख़ान जैसे कलाकारों की चिंताएं ही पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि सभी को इन चिंतातुर लोगों की आवाका में आवाका मिलाकर काोरदार आवाज़ बुलंद करनी होगी, जो भारत के भिन्न भिन्न धर्मों, बोलियों, जातियों, रंगों और संस्कृतियों का देश होते हुए इसे एकजुट देखना चाहते हैं। इससे भी आगे जा कर मौजूदा डर-भय के वातावरण में ऐसे लोगों का आगे आना ज़रूरी है जो देश को उन्नति के ऐसे मार्ग पर चलता देखने के लिए तत्पर हैं, जो गरीबी-अमीरी का अंतर मिटाये, जाति, धर्म, सांप्रदाय, रंग के भाव-भेदों को ख़त्म करे और वास्तविक समानता, आज़ादी व जनवादी मूल्यों पर आधारित समाज का निर्माण करे।                    
– मंगत राम पासला

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