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वृद्धावस्था पैंशन सम्मानजनक हो : सुप्रीम कोर्ट

वृद्धावस्था पैंशन सम्मानजनक हो : सुप्रीम कोर्ट

शिव अमरोही
भारत की सुप्रीम कोर्ट ने कुछ दिन पहले दिए अपने एक निर्णय में कहा है कि राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (National Social Assitance Programme-NASP) के तहत केन्द्र सरकार द्वारा दी जा रही वृद्धावस्था पैंशन सम्मानजनक होनी चाहिए। यद्यपि न्यायालय ने यह निर्धारत नहीं किया है कितनी राशि सम्मानजनक वृद्धावस्था पैंशन कही जा सकती है। इस समय कुछ एक प्रांतों में यह राशि मात्र 200 रुपये है। यह 200 रुपये राशि वर्ष 2012 में निर्धारित की गई थी और उपरोक्त न्यायालय में पेश किए आकड़ों के अनुसार वर्ष 2012 की तुलना में ये 200 रुपये, इस समय मात्र 92 रुपये के बराबर है। एडवोकेट श्री अश्विनी कुमार जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में यह पी.आई.एल. (Public Interest Litigation-PIL) डाली थी ने न्यायालय से कहा कि वृद्धावस्था में यह राशि कम से कम 3000 रुपये होनी चाहिए जो इस समय 60 से 80 वर्ष की आयु तक पात्र वृद्धों के लिए 200 रुपये तथा 80 वर्ष से अधिक आयु के पात्र वृद्धों के लिए 500 रुपये है।
हमारा देश जो कहने को तो लोक कल्याणकारी राज्य है लेकिन वरिष्ठ नागरिकों के प्रति घोर लापरवाही उपरोक्त दी जा रही राशि से स्पष्ट हो जाती है। वृद्धावस्था में व्यक्ति को अनेक रोग घेर लेते है। फिर 200/- रुपये से डाक्टर की फीस भी अदा नहीं की जा सकती है। दवाइयां,भोजन, आवास, वस्त्र तथा अन्य खर्चे कहां से और कैसे होंगे, इस ओर किसी का ध्यान ही नहीं है। वास्तव में निजीकरण,  विश्वीकरण की नीतियों के तहत आने-बहाने सभी कुछ कार्पोरेट जगत के लिए ही किया जा रहा है।
उपरोक्त राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (NASP) के अंतर्गत पांच कल्याणकारी योजनाएं (1) इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पैंशन योजना, (2) इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पैंशन योजना, (3) इंदिरा गांधी राष्ट्रीय अपंगता पैंशन योजना, (4)राष्ट्रीय पारिवारिक लाभार्थ योजना तथा (5) अन्नपूर्णा योजना शामिल की गई हैं। इन्हें देखने से ही पता चल जाता है कि उपरोक्त अधिकतर योजनाएं असामान्य वरिष्ठ नागरिकों या वृद्धों या अपंग लोगों के लिए हैं इसलिए इनके जीवन-यापन के खर्चे हर हाल में आम व्यक्ति से अधिक ही होंगे।
तो प्रश्न यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा है कि उपरोक्त पैंशन सम्मानजनक  होनी चाहिए, इसका क्या अर्थ लिया जाए? अर्थात  उपरोक्त कार्यक्रम  के अंतर्गत सम्मानजनक राशि कितनी हो। इसके लिए क्या न्यूनतम वेतन (Minimum Wage) को आधार नहीं बनाया जा सकता? इस सम्बन्ध में अलग-अलग कमीशन तथा कमेटियों की रिपोर्टें हैं। जिनके निष्कर्ष के आधार पर पति-पत्नी तथा उनके दो बच्चों के परिवार को आधार बना राष्ट्रीय ट्रेड यूनियनें कम से कम मजदूरी 26000 रुपये देने की मांग कर रही हैं। उपरोक्त रिपोर्ट इस राशि को जीवित रहने के लिए न्यूनतम राशि मान चुकी है। इस आधार पर एक व्यक्ति के लिए यह राशि 6500/- बनती है। केंद्र सरकार इस समय न्यूनतम वेतन (Minimum Wage)18000/-दे रही है। यदि इस आधार पर ही देखें तो भी यह राशि 4500/-बतनी है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि उपरोक्त गणना सामान्य लोगों के लिए है जबकि वरिष्ठ नागरिकों की समस्याएं सामान्य लोगों से कहीं अधिक हैं। सुप्रीम कोर्ट ने उपरोक्त सहायता कार्यक्रम के असंवेदनशील होने तथा गैर-जिम्मेदार होने पर भी गंभीर प्रश्न उठाएं है। उदाहरणार्थ न्यायधीश महोदय ने प्रश्न किया है कि विधवा पैंशन योजना के अंर्तगत वृन्दावन तथा जगन्नाथ पुरी में किसी विधवा को पैंशन नहीं दी गई होगी। शायद सरकार को यह भी पता न हो कि वृन्दावन तथा जगन्नाथपुरी में कितनी विधवा औरतें हैं। 6-6 महीने तक भी 200/- रुपये की मामूली सहायता नहीं दी जाती। इसी प्रकार इस पैंशन के लिए जिम्मेदार कमेटी के चयन का ढंग क्या है? न्यायाधीशों ने सरकार की तरफ से पेश महा अधिवक्ता (Additional Solicitor General) से तीन सप्ताह में शपथ पत्र पेश करने का कहा है और उसमें यह बताने के लिए कहा है कि क्या इन योजनाओं के लिए कोई शिकायत निवारण कक्ष भी है? तथा क्या योजनाओं का सोशल आडिट भी किया जाता है?
न्यायाधीशों ने केन्द्र सरकार को प्रत्येक जिले में कम से कम एक वृद्धाश्रम स्थापित करने का निर्देश भी दिया है।
एडीशनल सोलिस्टर जनरल के अनुसार 2018-2019 में तीन करोड़ वरिष्ठ नागरिकों को उपरोक्त योजनाओं के अंतगर्त लाभ प्राप्त हुआ है जबकि  एडवोकेट श्री अश्विनी कुमार ने कहा कि  2011 की जनगणना के अनुसार ही वरिष्ठ नागरिकों की संख्या 10 करोड़ 38 लाख से अधिक थी अर्थात एक तिहाई वरिष्ठ नागरिक भी यह लाभ प्राप्त नहीं कर सके।
उधर ‘दी वायर’ (वैव समाचार-पत्रिका) के अनुसार कार्पोरेट जगत बैंको से लिये गये कर्ज जो लौटाये नहीं गये व बट्टे खाते में डाल दिये गये (NPA) 2013 में तीन लाख हकाार करोड़ से कुछ ऊपर या 2018 में बढक़र 10 लाख हजार करोड़ से ऊपर चला गया है। बात बिल्कुल स्पष्ट है, नई आर्थिक और श्रमिक नीतियों के अंतगर्त जन कल्याणकारी नीतियों को तिलांजलि तथा कार्पोरेट जगत के लिए दो-दूनी-ग्यारह का पहाड़ा पढ़ा जा रहा है। श्रमिक, किसान, कर्मचारी, छोटा दुकानदार तथा छोटा कारखानेदार तथा बेरोजगार सभी इन नीतियों से दु:खी है। संघर्षों का आपसी तालमेल तथा विशाल व दृढ संघर्ष ही इनसे छुटकारा दिलाने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं।

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