भारत के मेहनतकश जनसमूह आज तरह-तरह के दुखों-दर्दों से पीडि़त हैं। इन दुखों के मारे लोगों में किसान व मजदूर भी शामिल हैं, बेरोजगार व अद्र्ध बेरोजगार भी, छोटे दुकानदार भी तथा निम्न मध्य वर्गीय कर्मचारी भी। परंतु इनके बहुत बड़े भाग को अभी यह समझ नहीं आया कि उनकी इन सामाजिक-आर्थिक समस्याओं, उनके साथ होती बेइंसाफियों व अपमानजनक ज्यादतियों आदि के वास्तविक कारण क्या हैं। वे कई प्रकार के भ्रमों व गलतफहमियों के शिकार हैं। बहुतेरे तो अपनी दिन-प्रतिदिन बढ़ती व अधिक गंभीर होती जा रही निजी स्तर की मुसीबतों को किसी दैवीय शक्ति का प्रकोप है समझे बैठे हैं। तथा, उस ‘शक्ति’ को खुश करने के लिये पूजा-पाठ करने, उसकी अराधना करने व उसे चढ़ावा चढ़ाने आदि जैसे दाकियानूसी कर्मकांडों में डूबे रहते हैं। या फिर वह, अपनी मुश्किलों के लिये किसी संबंधी या पड़ोसी को जिम्मेदार ठहरा कर उसे ही कोसते रहते हैं तथा व्यर्थ में गुस्से के घूंट भरते रहते हैं।
यद्यपि अच्छी बात यह है कि आम लोगों का काफी बड़ा भाग अब बेरोजगारी, मंहगाई, भ्रष्टाचार, गरीबी तथा व्यापक स्तर पर बढ़ती जा रही तंगहाली जैसी सामूहिक समस्याओं के लिए वर्तमान या भूतपूर्व सरकारों की जनविरोधी नीतियों को भी जिम्मेदार ठहराने लगा है। तथा, ऐसी सरकारों के प्रति अपने सामूहिक रोष का अक्सर ही इजहार भी करता है, सडक़ों पर आकर भी तथा चुनावों के समय भी। यही कारण है कि देश में जन रोष को रूपमान करते आंदोलन भी बढ़ रहे हैं तथा चुनावों में, कई बार, सत्ताधारी पार्टियों को करारी हार का मुंह भी देखना पड़ा है।
परंतु चुनावों द्वारा सरकारों के बदल जाने के बावजूद ना लोगों की यह बुनियादी समस्यायें हल हुई हैं तथा ना ही आम गरीबों की व्यक्तिगत तंगियां-फटेहालियां घटी हैं। वे बल्कि और बढ़ी हैं तथा अधिक जटिल बनती जा रही हैं। यह भी स्पष्ट दिखाई देता है कि अभी वो लोग बहुत थोड़े हैं जिन्हें अपने समस्त आर्थिक व सामाजिक मसलों की वास्तविक जड़ भारतीय सामंती संबंधों, अंध विश्वासों पर आधारित प्रतिक्रियावादी संस्कारों, वर्तमान लुटेरा पूंजीवादी प्रणाली तथा उसके प्रभाव से तेजी से क्षरित होते जा रहे सांस्कृतिक मूल्यों से जुड़ी हुई दिखाई देती हैं। ऐसे राजनीतिक रूप से चेतन लोग ही इस हकीकत को जान सकते हैं कि, वर्तमान पूंजीवादी ढांचे में, देशी व विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियां साम्राज्यवादी दमनकारी लूट-खसूट का सबसे बड़ा उभरता रूप हैं। तथा, यह लुटेरी व्यवस्था कारपोरेट क्षेत्र (बड़ेे-बड़े इजारेदार उद्योगपति, बड़े भूस्वामी तथा बड़े व्यापारी) तथा भ्रष्ट राजनीतिक नेताओं व अफसरशाही की आपसी सांठगांठ से निरंतर फलती-फूलती जा रही है। मेहनतकश लोगों का खून-चूसने वाले इन सभी वर्तमान ‘मलिक भागो’ (शोषकों) की अधिक से अधिक धन इक_ा करने की अपूर्णीय लालसा भी आम लोगों की समस्त तंगियों-बदहालियों व जरूरतों की जन्मदाता है। तथा, इसी कारण ही वे नित्य नई सामाजिक-आर्थिक मुसीबतों में फंसते जा रहे हैं। इन स्थितियों में समूचे मेहनतकश आवाम को इस निर्दयी लूट तंत्र के समस्त घातक अंगों के प्रति, विशेष, रूप से मौजूदा सरकारों की इस दिशा में क्रियाशील चलंत नीतियों के प्रति, जागरूक करना वामपंथी शक्तियों के लिये अति जरूरी व महत्त्वपूर्ण कार्य है। क्योंकि केवल जागरूक व संगठित हुये जनसमूह ही इन समस्त लुटेरों की हर तरह की दंभी चालों को परास्त कर सकते हैं तथा अपने भविष्य को सुधार सकते हैं। ऐसे जागृत व संगठित लोग ही हर तरह की मुश्किलों से मुक्ति प्राप्त करने के लिये ठोस व निर्णायक संघर्षों का दरूस्त रास्ता अपना सकते हैं। मानव इतिहास इस बात का गवाह है कि मेहनतकश लोगों का जो भी भाग संगठित होकर अपनी शक्ति के अनुरूप व ठोस संघर्ष चलाता है, वह अवश्य ही एक ना एक दिन अपनी समस्याओं को हल करवाने में सफलता प्राप्त करता है; तथा अपनी मुश्किलों के वास्तविक कारणों के प्रति एक सीमा तक और अधिक सचेत भी होता है। जबकि जीवन का जोखिम भरे वर्गीय संघर्षों का यह रास्ता बड़ा लंबा व कठिन है तथा सख्त परिश्रम व तपस्या की मांग भी करता है; परंतु हर तरह की मुसीबतों से मुक्ति प्राप्त करने के लिये इसके अतिरिक्त और कोई रास्ता है भी नहीं। इस विषम मार्ग पर चलते हुये, कभी-कभी, सहयात्रियों के बीच आपसी विरोधाभास भी उभर आते हैं, जिन्हें बड़ी सहजता व धीरज से सुलझाना पड़ता है। लुटेरे सत्ताधारियों द्वारा ऐसे जन संघर्षों पर दमन भी लाजमी किया जाता है। इस उद्देश्य के लिये वे कई तरह के हथकंडों का प्रयोग करते हैं। वे जन संघर्षों के विरुद्ध धूर्ततापूर्ण प्रचार का सहारा भी लेते हेैं, लड़ाकू कतारों में फूट डालने का भी प्रयत्न करते हैं तथा लड़ाकू तत्वों पर बदले की भावना भरी कार्यवाहियां व अन्य हर तरह के राजकीय दमन का शिकार भी बनाते हैं।
परंतु हमारे देश की वर्तमान अवस्थाओं में मेहनतकश जनसमूहों को जागरूक व संगठित करने के लिये किये जाने वाले कठिन व दृढ़ता भरपूर कार्य को पूर्ण किये बिना अब गुजारा नहीं है। देश के भीतर भयंकर रूप धारण कर चुकी बेरोजगारी के कारण केवल रोजगार की तलाश करते नौजवानों में ही व्यापक हताशा नहीं है बल्कि देश की समूची जनसंख्या ही बुरी तरह चिंतातुर है। जबकि केंद्र व राज्य सरकारों को इसकी रत्ती भर भी कोई परवाह नहीं है। केंद्र की मोदी सरकार तो अपने इजारेदार पूंजीपति गिरोह के मित्रों द्वारा बड़े बड़े मुनाफों के रूप में की जाती लूट को और बढ़ाने व मजबूत करने प्रति ही चिंतित है। मानव संसाधनों की सामाजिक विकास के लिये उपयुक्त योजनाबंदी करने की जगह यह तो इसके विपरीत इस दिशा में नीतियां बनाती है जिससे भिन्न-भिन्न योग्यताओं वाले बेरोजगारों की कतारों और लंबी होती जायें ताकि पूंजीपतियों को सस्ती से सस्ती दर पर श्रमिक-मजदूर मिलते रहें तथा उनके मुनाफे फलते फूलते रहें। यही कारण है कि, देश में एक ओर, करोड़ों की संख्या में जीवन-यापन योग्य रोजगार तलाशते हाथों के कारण हाहाकार मची हुई है तथा दूसरी ओर कुल घरेलू उत्पाद (त्रष्ठक्क) के बढ़ते जाने का ढिंढोरा पीटा जा रहा है; जिसका 58 प्रतिशत से बढक़र 73 प्रतिशत भाग कुल जनसंख्या के उपरी 1 प्रतिशत पूंजीपतियों के पास इक_ा हो गया है।
इसी तरह, मोदी-मनमोहन सिंह मार्का खुले बाजार की साम्राज्यवाद निर्देशित नीतियों ने बड़े बड़े व्यापारियों की पौ-बारह कर दी है, परंतु दूसरी ओर निरंतर बढ़ती जा रही मंहगाई ने उपभोक्ताओं का खून निचोड़ लिया है, तथा कृषि उत्पाद पैदा करने वाले मजदूरों व किसानों को आत्महत्यायें करने के लिए मजबूर कर दिया है। कृषि क्षेत्र के इस बेहद त्रासदिक घटनाक्रम को रोक पाने में समस्त सरकारी ढकोसलेबाजियां अब तक पूरी तरह असफल सिद्ध हुई हैं।
इस पूंजीवादी लूट-खसूट का परिणाम ही है कि देश का समूचा प्रशासन विशेष, रूप से पुलिस प्रशासन पूरी तरह भ्रष्ट हो चुका है। रिश्वतखोरी को रोकने के लिये बनाये जाते सारे ही संस्थान खुद भ्रष्ट सिद्ध हो चुके हैं। इस संदर्भ में, भ्रष्टाचार व अन्य संगीन अपराधों की पड़ताल करने वाले देश के सर्वोच्च संस्थान, सीबीआई के प्रमुख व उसके सहायक के बीच एक दूसरे पर करोड़ों रुपये की रिश्वत लेने के आरोप लगाने की आजकल छिड़ी घिनौनी जंग, हमारी इस टिप्पणी को भली प्रकार प्रमाणित करती है। वास्तव में, यह रिश्वतखोरी ठीक शिखर से ही शुरू होती भी स्पष्ट दिखाई दे रही है। प्रधानमंत्री की कारपोरेट घरानों से संबंधित मित्र-मंडली का वास्तविक चेहरा माल्या, नीरव मोदी, अडानी, अंबानियों के रूप में सबके समक्ष है। राफाइल लड़ाकू विमानों के सौदे ने भी प्रधानमंत्री की ‘ईमानदारी’ का भांडा बीच चौराहे में फोड़ दिया है।
इस पृष्टठभूमि में, सरकार की इन समस्त असफलताओं से लोगों का ध्यान बंटाने के लिये तथा अपने फिरकू-फाशीवादी एजंडे को पूर्ण करने के लिये, प्रधानमंत्री की पीठ पर खड़ी आरएसएस, देश की भीतरी समस्त प्रशासनिक, शैक्षणिक व सांस्कृतिक संस्थाओं के महत्त्वपूर्ण पदों पर काबिज हो चुकी है। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत द्वारा सरकार को अयोध्या में विवादित स्थल पर मंदिर बनाने के लिये तुरंत अध्यादेश जारी करने का आदेश सरेआम दिया जा रहा है। इस तरह उनके द्वारा देश भर में सांप्रदायिक तनाव को और तीव्र करने के लिये जमीन तैयार की जा रही है। क्षेत्रीय विवाद जानबूझ कर उभारे व तीखे किये जा रहे हैं। समस्त देश भर में विशेष रूप से भाजपा शासित राज्यों में सरकारी शह पर, सांप्रदायिक गुंडागर्दी राक्षसी गिरोहों का रूप धारण करती आ रही है। तथा, अल्पसंख्यकों, दलितों, स्त्रियों व आदिवासियों को राजकीय व इस राक्षसी दमन का निशाना बनाया जा रहा है।
इन अति चिंताजनक अवस्थाओं में लोगों को उनकी समस्त समस्याओं के वास्तविक कारणों के प्रति जागरूक करने के लिये ही हमारी पार्टी, आरएमपीआई द्वारा एक ‘‘जन-जन जगाओ-लुटेरे भगाओ’’ अभियान संगठित किया जा रहा है। इस उद्देश्य के लिये 12 नवंबर को, समस्त धर्मों से संबंधित भारतीय लोगों की एकजुटता, हकीकी देशभक्ति व महान बलिदानों के ऐतिहासिक प्रतीक जलियांवाला बाग (अमृतसर) से, दो जत्थे चलेंगे। इन जत्थों में पार्टी की समस्त लीडरशिप शामिल रहेगी। एक जत्थे का नेतृत्व पार्टी के महासचिव कामरेड मंगत राम पासला करेंगे, जबकि दूसरे जत्थे का नेतृत्व पार्टी के केंद्रीय कमेटी सदस्य कामरेड गुरनाम सिंह दाऊद करेंगे। 21 नवंबर तक यह जत्थे समूचे प्रांत में विशाल जनसभायें करके लोगों की वर्तमान समस्याओं व उनके फौरी समाधान के बारे में लोगों से पार्टी की समझदारी की रौशनी में विचार-चर्चा करेंगे। इन 10 दिनों के दौरान यह जत्थे कुल मिलाकर 60 से अधिक विशाल जनसभाओं को संबोधित करेंगे। इसके अतिरिक्त ग्राम स्तर पर छोटी एकत्रतायें करके जत्थे के उद्देश्य के बारे में लोगों से विचार-चर्चा की जायेगी। तथा इससे आगे बढ़ते हुये, लोगों के समक्ष वाम व जनवादी विकल्प पेश करने हेतु 10 दिसंबर को जालंधर में की जा रही विशाल ‘‘अधिकार रैली’’ में परिवारों सहित शमूलियत करने का आह्वान भी किया जायेगा। पाठकों से अपील की जाती है कि कारपोरेट क्षेत्र की लूट को बढ़ावा देने वाली सरकारों से मुक्ति प्राप्त करने के लिये, जत्था मार्च के इस समूचे कार्यक्रम को अधिक से अधिक सफल बनाने के लिये इसमें बढ़-चढ़ कर भागीदारी करें।
– हरकंवल सिंह