Now Reading
विश्व दर्पण (संग्रामी लहर-नवंबर 2018)

विश्व दर्पण (संग्रामी लहर-नवंबर 2018)

रवि कंवर

आस्ट्रेलिया में मजदूर विरोधी श्रम कानूनों के विरुद्ध प्रदर्शन

आस्ट्रेलिया में 23 अक्तूबर को मेहनतकश वर्ग ने काम बंद करके जोरदार प्रदर्शन किये तथा जनसभाओं द्वारा अपनी मांगों को बुलंद किया। देश के प्रमुख शहर मेलबोर्न में प्रदर्शन करते हुए मेहनतकश केंद्रीय व्यापार जिले के विशाल मैदान में इक_े हुए। देश की अग्रणी ट्रेड यूनियन आस्टे्रलियन कौंसिल आफ ट्रेड यूनियन (ए.सी.टी.यू.) के आह्वान पर हुई इस एकत्रता में 1 लाख 70 हजार से अधिक लोग शामिल थे।
इन प्रदर्शनों को ‘‘कानूनों में बदलाव करो’’ अभियान के तहत आयोजित किया गया तथा इनका मुख्य नारा था ‘‘आस्ट्रेलिया को वेतन बढ़ौत्तरी की जरूरत है’’। यह कार्य स्थलों से संबंधित उन मजदूर विरोधी कानूनों में संशोधन की मांग करने के लिए थे, जो मजदूरों द्वारा अपने वेतनों में बढ़ौत्तरी तथा कार्य स्थितियों को बेहतर बनाने के लिए चलाये जाने वाले संघर्षों में बाधा बनते हैं।
विक्टोरिया प्रांत के ट्रेड यूनियन सचिव ल्यूक हिलकारी ने इस विशाल जनसभा को संबोधन करते हुए कहा कि यह फार्मूला कि पूंजीवाद को प्रफुल्लित करो उससे रिस-रिस कर (ञ्जह्म्द्बष्द्यद्ग) मिलने वाले लाभों से मेहनतकशों को खुशहाली प्राप्त होगी पूरी तरह धोखेपूर्ण है तथा नाकाम सिद्ध हुआ है। एक ओर तो पूंजीपतियों का उत्पादन व मुनाफा बढ़ रहा है दूसरी ओर बहुसंख्यक मेहनतकशों को कई सालों से वास्तवित रूप में वेतन बढ़ौत्तरी भी नहीं मिल रही है। आज स्थिति यह है कि 700 विशालकाय कंपनियां एक भी पैसा टैक्स के रूप में नहीं दे रही हैं, जबकि देश में 40 प्रतिशत मजूदर ठेका-प्रणाली में रखे जाते हैं जो कि स्थाई रोजगार से मिलने वाले लाभों से वंचित हैं। इस वर्ष अभी तक 21 मजदूर औद्योगिक दुर्घटनाओं में मारे जा चुके हैं।
इस जनसभा को आस्ट्रेलियन नर्सिंग व मिडवाईफरी फैडरेशन की विक्टोरिया इकाई की सचिव लीसा फिट्ज पैट्रिक, इलैक्ट्रिकल ट्रेडज के राज्य सचिव ट्रोये ग्रे तथा ए.सी.टी.यू. के सचिव सैली मक्कमनूस ने भी संबोधन किया तथा उन्होंने चेतावनी दी कि इस समय ट्रेड यूनियनों की सदस्यता 15 लाख है तथा वे केंद्रीय गठजोड़ सरकार को गिराने की सामथ्र्य रखती हैं।
आस्ट्रेलिया के दूसरे बड़े शहर सिडनी में भी इसी ‘‘कानूनों में बदलाव करो’’ के अभियान के आह्वान पर एक विशाल प्रदर्शन हुआ जो बाद में बेलमोर पार्क में पहुंच कर एक जनसभा का रूप ग्रहण कर गया। इस जनसभा को संबोधित करते हुये मैरीटाइम यूनियन आफ आस्ट्रेलिया के राष्ट्रीय उप सचिव वारेन स्मिथ, ए.सी.टी.यू. के राष्ट्रीय अध्यक्ष माईकल-ओ-नील ने चेतावनी देते हुए कहा कि राजनेताओं को यह भ्रम ना हो कि यह लेबर पार्टी (वर्तमान में संसद में विपक्षी पार्टी) को चुनाव जिताने का अभियान है, हमारा संघर्ष तो उन श्रम कानूनों में बदलाव करवाना है जो पूर्ण रूप में मालिकों के पक्ष में हैं। केंद्र में सत्तासीन मजदूर-विरोधी गठजोड़ सरकार को सत्ता से हटाना  इसका पहला कदम है। ट्रेड यूनियनें श्रम कानूनों में बदलाव के लिये तब तक संघर्ष करती रहेंगी जब तक उनकी यह मांग पूरी नहीं होती, सरकार जो मर्जी आये।
इलैक्ट्रिक ट्ऱेडज यूनियन के राष्ट्रीय सचिव डेव मैकफिनले ने अपने संबोधन में कहा कि हमें इसकी कोई परवाह नहीं कि सरकार किसकी है। हम अपनी यूनियन के हजारों कार्यकर्ताओं को मैदान में लायेंगे तथा हर राजनीतिक नेता के घर के समक्ष तब तक प्रदर्शन करेंगे जब तक कि मजदूर विरोधी कानूनों में बदलाव नहीं किया जाता।

महिला कामगारों की समान वेतन के लिये शानदार हड़ताल
औद्योगिक क्रांति  के जनक युनाइटिड किंगडम आफ ग्रेट ब्रिटेन, जिसे आम तौर पर ब्रिटेन के नाम से जाना जाता है के भाग स्काटलैंड के ग्लासगो शहर के महिला कामगारों ने 23 व 24 अक्टूबर दो दिन की हड़ताल की। यहां यह जान लेना भी उचित होगा कि ब्रिटेन, इंग्लैंड, वेल्स, स्काटलैंड तथा उत्तरी भारत आयरलैंड चार देशों का एक संघात्मक समूह देश है। यह भी हैरानीजनक है तथा पूंजीवाद के घिनौने चेहरे का लक्षण है कि इस अति विकसित देश में भी महिला कामगारों को पिछले कई वर्षों से पुरुषों के समान वेतन नहीं मिल रहा।
22 अक्तूबर की मध्य रात्रि से आरंभ हुई इस हड़ताल में यूनीसन व जीएमबी यूनियनों से संबंधित कामगार शामिल थे, तथा इसमें स्थानीय कौंसिल (म्युनिसिपल कारपोरेशन) के सफाई, बुर्जुगों व बच्चों की देखभाल करने वाली, स्कूलों में भोजन बनाने वाली व ठेका प्रथा पर रखी गई महिलाकर्मी शामिल थीं। लगभग 8500 के करीब महिला कामगार हड़ताल पर थीं, जो कि कुल कार्य शक्ति का 90 प्रतिशत बनती हैं। बी.बी.सी. के अनुसार ब्रिटेन के इतिहास की सबसे बड़ी व सफल हड़तालों में से यह हड़ताल एक थी।
22 अक्तूबर की मध्य रात्रि से ही रात्रि शिफ्ट खत्म होने के बाद हड़ताल करके महिला कामगारों ने सभी कार्य स्थलों के समक्ष धरने शुरू कर दिये थे। इस तरह शहर में सैंकड़ों स्थानीय निकायों के विभागों के सामने एकत्रतायें हुईं थीं। दिन होने पर इन एकत्रताओं ने ग्लासगो शहर के क्षेत्र ग्लासगो ग्रीन की ओर अपनी यात्रा शुरू कर दी। जहां हजारों महिला कामगार व उनके समर्थन में पहुंचे अन्य ट्रेड यूनियन कार्यकत्र्ताओं ने मानव-समुद्र का रूप धारण कर लिया। 10 हजार से अधिक लोगों का इस स्थान से शुरू हुआ मार्च विभिन्न यूनियनों के लाल झंडों, बैनरों तथा प्लेकार्डों से सुसज्जित बहुत ही शानदार रंग बिरंगा दृश्य पेश कर रहा था। इस मार्च में मुख्य रूप से आसमान चीरने वाले नारे थे-‘‘हम क्या चाहते हैं? -समान वेतन!’’, ‘‘यह कब चाहिये?-अभी-अभी!’’ यह मार्च ग्लासगो ग्रीन से शुरू होकर जार्ज स्कवायर पहुंचा। जहां यह विशाल रैली का रूप धारण कर गया। रैली उन कामगारों को मौन श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद शुरू हुई, जो बिना समान वेतन पाये बिछुड़ गये थे। इसे संबोधित करते हुए यूनीसन ट्रेड यूनियन की स्थानीय शाखा अध्यक्ष मेरी डासन ने कहा-‘‘यह महिलाएं इस शहर का वह अंग हैं जो इसकी सफाई, देखभाल करता है, शिक्षा प्रदान करता है तथा शहर के कई सबसे अशक्त अपंगों, बजुर्गों व बच्चों की देखभाल करता है, इसके लिये हड़ताल पर जाने का निर्णय लेना भावनात्मक रूप से बहुत कठिन था। इनके महत्त्वपूर्ण सेवायें प्रदान करने के बावजूद इनके कार्य को बहुत ही कमतर करके मूल्यांकित किया जाता है। यह समय है कि ग्लासगो नगर कौंसिल इनसे लंबे समय से हो रहे अन्याय को दूर करे तथा यह महिलायें पुन: अपनी उन महत्त्वपूर्ण सेवाओं को आरंभ कर सकें, जिन पर हम निर्भर करते हैं।’’
जीएमबी यूनियन की शाखा सचिव शोना थामसन, जो कि खुद भी हड़ताली महिला हैं, ने रैली को संबोधित करते कहा – ‘‘हमें पता है हम यहां क्यों एकत्रित हुये हैं। हम निश्चित रूप से जीतेंगे। हमें न्याय चाहिये। प्रशासन कम वेतन प्राप्त करने वाले पुरूषों व स्त्रियों को एक दूसरे के विरुद्ध खड़ा करने के प्रयत्न बंद करें। हम सालों से समान वेतन की इंतजार कर रहे हैं इसलिये हम गुस्से में है। जो काऊंसलर हमारे पक्ष में होने की बात करते हैं वह गंभीरता से हमारे पक्ष में खड़े हों। मैं एक यूनियन कार्यकर्ता हूं क्योंकि मैं देखभाल करने की नौकरी करती हूं। कौंसिल के मुख्य अधिकारी को मुझे मेरे कार्य के महत्त्व को समझाने की जरूरत नहीं, यदि जरूरत है तो वह है, हमारे कार्य को उचित रूप से मुल्यांकित करते हुए हमारे साथ हो रहे अन्याय को दूर करने की।’’
ग्लासगो की इन महिला कामगारों की यह हड़ताल दशकों से उनसे हो रहे अन्याय से उपजे गुस्से का परिणाम थी। दशकों से उन्हें वेतन उन्हीं विभागों में कार्यरत पुरुष कामगारों से कम दिया जा रहा है। पहले इस कौंसिल की बागडोर लेबर पार्टी के पास थी। फिर भी इसके बारे में महिलाओं द्वारा बार-बार आवाज बुलंद करने पर भी कुछ नहीं किया गया। पिछले एक दशक से कामगार अदालत में गये हुए थे। अदालत ने आदेश देते हुए कहा कि इन महिला कामगारों को पुरूषों के समान वेतन तो दिया ही जाये तथा उन्हें दशकों से इस आधार पर बनते वेतन के बकायों की अदायगी भी की जाये। इस आदेश के बाद वर्तमान में कौंसिल पर काबिज पार्टी स्काटिश नैशनल पार्टी के मुख्य काऊंसलर ने यह आदेश मानने का वादा तो कर दिया, परंतु इसके पालन को निरंतर लटकाया जाता रहा। कई बार बातचीत के बाद भी कोई सार्थक परिणाम नहीं निकले। इससे पैदा हुए गुस्से व दुख: को इन महिलाओं के ब्यान बखूबी से दर्शाते जो उन्होंने ‘रोलिंग न्यूज’ के संवाददाता को दिये। एक महिला कामगार का कहना था ‘‘हमें न्याय चाहिए। मैं एकल मां हूं, 800 पाऊंड प्रति माह में बहुत मुश्किल से अपना घर चलाती हूं।’’ इसी तरह हड़ताली कारोल कुआ का कहना था ‘‘मैं तीन काऊंसिल नौकरियां करती हूँ फिर भी गुजारा चलाने के लिये बहुत संघर्ष करना पड़ता है।’’ यहां यह वर्णन योग्य है कि कूड़ा उठाने वाले पुरूष कामगार का वेतन इसी तरह का कार्य करनी वाली महिला से 3 पाऊंड अधिक है।
इस हड़ताल को पुरूष कामगारों की ओर से भी व्यापक समर्थन मिला। 23 अक्तूबर को कौंसिल के अधिकारियों द्वारा अनुशासनात्मक कार्यवाही की धमकी देने के बावजूद सभी 600 कूड़ा उठाने वाले कामगार काम बंद करके विभागों के समक्ष धरने पर बैठी हड़ताली महिला कामगारों के साथ धरनों में शामिल हुये। यह लगभग सभी पुरूष कामगार थे। प्रदर्शन व रैली में तो अन्य सरकारी विभागों के कर्मचारी भी बड़ी संख्या में शामिल हुये थे।
यह हड़ताल ब्रिटेन, विशेष रूप से ग्लासगो में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान घटी महान ‘रैड कलेसाईड’ क्रांतिकारी घटनाओं की 100वीं वर्षगांठ के अवसर पर की गई है। यह आंदोलन प्रथम विश्व युद्ध लड़ रहे सैनिकों व कामगारों के लिये ‘जीवनयापन योग्य’ वेतन निर्धारित करवाने के लिये था। इसने 20वीं के मजदूर आंदोलन को नई गति प्रदान की थी। इसी तरह ग्लासगो की महिला कामगारों की इस हड़ताल ने ब्रिटेन जैसे विकसित देश में महिलाओं से, देश में समान वेतन का कानून होने के बावजूद, हो रहे अन्याय को नंगा कर दिया है। तथा इस अन्याय को दूर करवाने के लिये संघर्ष का बिगुल फूंक दिया है।

श्री लंका के चाय बागान मजदूर संघर्ष की राह पर
श्री लंका के केंद्रीय प्रांत का नूवारा इलिया कस्बा अपने चाय बागानों के लिये प्रसिद्ध है। इसकी ‘हल्की चाय’ दुनिया भर की स्वादिष्ट चाय पत्तियों में एक गिनी जाती है। 13 वर्ग किलोमीटर का यह पहाड़ी क्षेत्र जहां अपनी खूबसूरती में अद्वितीय है वहीं इस क्षेत्र में रहने वाले लोग, जो कि चाय मजदूर हैं बहुत ही दयनीय स्थितियों में अपना जीवन व्यतीत करने को मजबूर हैं। 19वीं शताब्दी में अंग्रेज चाय बागानों के मालिक इनके दादा-परदादाओं को प्रवासी मजदूरों के रूप में यहां काम करने लेकर आये थे। अधिकतर मजदूर उन्हीं के वंशज हैं। पूरे पूरे परिवार यहां मजदूरी करते हैं। महिलायें चाय पत्ती तोडऩे का कार्य करनी हैं जबकि पुरूष साथ में जुड़ी फैक्ट्रियों में चाय प्रोसैसिंग व उनको लादने-ले जाने का कार्य करते हैं। इन बागानों में रहने के लिये बहुत ही जर्जर किस्म के मकान इन्हें दिये गये हैं, जिनमें बुनियादी सुविधायें, पानी व शौचालय तक ढंग के नहीं हैं। न ही इन आवास समूहों, जिन्हें ‘लाइनों’ का नाम दिया जाता है के नजदीक बच्चों की पढ़ाई व स्वास्थ्य आदि की सुविधायें हैं। इसके परिणामस्वरूप इनके बच्चे भी इन्हीं बागानों में उनकी तरह ही नर्क भरी जिंदगी व्यतीत करने के लिए मजबूर हैं।
सितंबर माह से यह बागान मजदूर अपने वेतन में बढ़ौत्तरी के लिये संघर्षरत हैं। बहुत ही दयनीय स्थितियों-सांपों की भरमार, मच्छरों की भरमार आदि के कारण निरंतर बिमारियों से जूझने वाले इन मजदूरों को 500 श्री लंकन रूपये प्रति दिन वेतन दिया जाता है। अक्टूबर के अंत में बागान मजदूरों के न्यूनतम वेतन के बारे में नया समझौता होना है। उनकी मांग है कि न्यूनतम वेतन 1000 रुपये प्रति दिन निर्धारित की जाये जबकि बागान मालिकों की एसोसियेशन इसे सिर्फ 600 प्रति दिन करने पर अड़ी है। जनवरी 2016 में श्री लंका के मजूदरों के लिये न्यूनतम वेतन 400 रुपये प्रति दिन निर्धारित किया गया था जो कि बागान मजदूरों को भी इतना ही दिया गया था। 2013 में किये गये एक स्वतंत्र अध्ययन के अनुसार चाय बागान मजदूर परिवार, जो कि चार सदस्यों का हो, उसे अपने न्यूनतम जीवन यापन के लिये 1538 रुपये प्रति दिन की जरूरत है। जबकि इस समय स्थिति यह है कि 2016 में निर्धारित वेतन 400 रुपये ही मिल रहा है, कुछ बागानों में यह मंहगाई भत्ते के जुडऩे पर 500 रुपये भी मिल रहा है। यह भी तब मिलता है यदि मजदूर 8 घंटे में 18 किलो चाय पत्ती तोड़ते हैं।
सितंबर माह से ही नूवारा इलिया कस्बा संघर्षों का मैदान बना हुआ है। रोजाना किसी न किसी बागान से सामने बागान मजदूर प्रदर्शन कर रहे हैं। 24 अक्तूबर को चाय बागान मजदूरों का यह संघर्ष चरम सीमा पर पहुंच गया जब देश की राजधानी कोलंबो के केंद्रीय भाग में स्थित गाले फेस ग्रीन क्षेत्र में हजारों मजदूर व उनके समर्थन में अन्य क्षेत्रों के मजदूरों ने विशाल रैली तथा प्रदर्शन किया। इसकी विशेषता यह थी कि इसमें बहुत बड़ी संख्या में नौजवान शामिल थे, जिनमें कई काफी पढ़े लिखे भी थे तथा उनकी संख्या 5000 से भी अधिक थी।
रैली करने के बाद एक विशाल एकत्रता यहां से नजदीक ही स्थित राष्ट्रपति सचिवालय की तरफ बढऩा शुरू हुई। जिसे पुलिस ने कुछ दूरी पर रुकावटें खड़ी कर रोक लिया। इसके पश्चात प्रदर्शनकारियों ने वहीं धरना देने का निर्णय लिया। सरकार द्वारा अगले दिन सचिवालय के अधिकारियों से मिलने की सूचना दी गई। रात लगभग 8 बजे पुलिस ने धरना दे रहे लोगों पर दमनचक्र शुरू कर दिया।
चाय बागान मजदूरों के संघर्ष का नेतृत्व मुख्य रूप में नैशनल यूनियन आफ वर्कर्स व सीलोन वर्कर्स कांग्रेस कर रही हैं। तथा यह संघर्ष अपने इस संकल्प के साथ जारी है कि न्यूनतम वेतन 1000 श्री लंकन रुपये प्रति दिन निर्धारित किया जाये।
इस संघर्ष के दौरान तामिल कवि आधावन दीतचिन्या द्वारा लिखित यह कविता बागान मालिकों के शोषण व इस संघर्ष की दृढ़ता को प्रकट करती हैं :
‘‘हमारी लाशें तुम्हारे चाय बागानों के लिये उर्वरक हैं।
जिस चाय की तुम सुबह चुस्कियां लेते हो वह हमारे खून से सनी है।’’

Scroll To Top