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रफाल युद्धक विमान सौदे की वास्तविकता खुद नरेंद्र मोदी कटघरे में

रफाल युद्धक विमान सौदे की वास्तविकता खुद नरेंद्र मोदी कटघरे में

प्रो. जैपाल
भारतीय वायुसेना के लिए आवश्यक युद्धक विमानों की खरीद संबंधी सौदा काफी समय से विवाद का विषय बना हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा चिल्ला-चिल्ला कर किए जाने वाले दावे – ‘‘ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा’’ की हवा निकल गई है। हाल में ही चेन्नई से छपते प्रसिद्ध अंग्रेकाी समाचारपत्र ‘द हिन्दू’, जिसने कि पहले बोफोर्स तोप घोटाले का भी पर्दाफाश किया था, ने अब रफाल विमान खरीद सौदे से संबंधित तथ्यों का रहस्योद्घाटन किया है, जो केंद्र की भ्रष्ट सरकार द्वारा देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट से भी छुपाये गए हैं तथा जो प्रधानमंत्री कार्यालय के अनावश्यक व रक्षा मंत्रालय की खरीद संबंधी चल रही प्रक्रिया के समानांतर हस्तक्षेप को दर्शाते हैं। आओ, इस खरीद सौदे की पृष्ठभूमि पर नजर डालें।
भारतीय वायुसेना ने अपने लिए अति-आवश्यक 126 युद्धक विमानों की खरीद के लिए वर्ष 2007 में अंतराष्ट्रीय कंपनियों से टैंडर मांगे थे तथा खरीदे जाने वाले विमानों के पैमाने व उनमें लगने वाले साजो-समान के बारे में पूरे विस्तार से मापदंड बताए थे। इस बारे में आए टैंडरों के अनुसार फ्रांस की विमान निर्माता कंपनी ‘दासों ऐवियेशन’ के दाम सबसे कम थे तथा चार यूरोपीय देशों ब्रिटेन, जर्मनी, इटली व स्पेन की संयुक्त भागीदारी वाली कंपनी ‘यूरोफाईटर’ के दाम दूसरे नंबर पर थे। इसे देखते हुए तत्कालीन डाक्टर मनमोहन सिंह की यू.पी.ए. सरकार ने ‘दासों एवियेशन’ से बातचीत को आरंभ किया। इतनी बड़ी राशि वाले खरीद सौदे में दलाली व रिश्वत की संभावना पर अंकुश लगाने के लिए तथा भारत पक्षीय शर्तें मनवाने के लिए समय-समय पर मानक व तौर-तरीके निर्धारित किए जाते रहे। इसी सिलसिले में 29 अगस्त 2001 को ‘रक्षा खरीद कौंसिल’ (ष्ठ्रश्व) की स्थापना की गई थी। जिसका मुखिया रक्षा मंत्री व तीनों सेनाओं के अध्यक्षों समेत 12 अन्य लोग इसके सदस्य होते हैं। इसका कार्य है, खरीद संबंधी नीति-निर्देश तौर करने, इसके सभी सदस्यों की अपनी-अपनी जिम्मेदारियां होती हैं तथा रक्षा सचिव इसमें मुखिया के रूप में कार्य करता है। समय-समय पर खरीद विधि (ष्ठक्कक्क) बनाई जाती है तथा हर सौदे के मद्देनजर उस क्षेत्र के विशेषज्ञों के आधार पर कुछ और सदस्य शामिल कर ‘भारतीय सौदेबाज कमेटी’ (ढ्ढहृञ्ज) का गठन किया जाता है, जो दामों व अन्य तकनीकी आवश्यकताओं पर बातचीत करती है। इस समस्त प्रक्रिया में प्रधानमंत्री कार्यालय की कोई भूमिका नहीं होती।
इस समूचे घटनाक्रम को निम्न सारणी स्पष्ट करती है:
29 अगस्त, 2001 : रक्षा खरीद कौंसिल (ष्ठ्रश्व) का गठन (वाजपेयी सरकार)
30 दिसम्बर, 2002 : रक्षा खरीद को सुचारु रूप देने के लिए रक्षा खरीद प्रक्रिया (ष्ठक्कक्क) को स्वीकृति दी गई (वाजपेयी सरकार)
ऑफसैट नीति 2005 : यह नीति विदेशी स्पलायर को ठेके की राशि का न्यूनतम 30 प्रतिशत भाग भारत में खर्च करने के लिए प्रतिबद्ध करती है। (डाक्टर मनमोहन सिंह सरकार)
28 अगस्त, 2007 : रक्षा मंत्रालय ने 126 मीडियम-मल्टी-रोल, युद्धक विमान खरीदने का निवेदन किया तथा टैंडर मांगे। (डाक्टर मनमोहन सिंह सरकार)
मई, 2011 : विभिन्न टैंडरों के निरीक्षण के बाद न्यूनतम दामों वाली दो कंपनियों क्रमवार ‘दासो ऐवियेशन’ व ‘यूरोफाईटर’ के टैंडरों पर विचार-विमर्श करने का निर्णय लिया गया।
30 जनवरी, 2012 : न्यूनतम कीमत होने के कारण ‘दासों ऐवियेशन’ को रफाल युद्धक विमानों की खरीद के लिए चुन लिया गया।
13 मार्च, 2014: ‘दासों ऐवियेशन’ व सार्वजनिक क्षेत्र की भारतीय कंपनी, हिंदुस्तान एयरोनैटिक्स लिमिटेड (॥्ररु) (ऑफसैट भागीदार) के बीच 126 में से 108 युद्धक विमानों के निर्माण के लिए क्रमिक 70′ व 30′ कार्य के भाग के बारे में समझौता।
8 अगस्त, 2014: तत्कालीन रक्षा मंत्री ने संसद को बताया कि सीधे उडऩे की अवस्था में तैयार 18 युद्धक विमान, समझौता होने के 3-4 वर्षों के भीतर मिलने की आशा है तथा बाकी 108 आगामी 7 वर्षों में मिल जाएंगे। (मोदी सरकार)
28 मार्च, 2015: अनिल अंबानी की ‘रिलायंस डिफैंस लिमिटिड (क्रष्ठष्ट) नाम की निजी क्षेत्र की कंपनी का पंजीकरण होता है।
8 अप्रैल, 2015 : उस समय के विदेश सचिव का कहना था कि ‘दासों ऐवियेशन’, रक्षा मंत्रालय व हिंदुस्तान एयरोनौटिक्स के बीच विस्तारित बातचीत जारी है।
10 अप्रैल, 2015 : अचानक प्रधानमंत्री मोदी व फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रांसवा औलांद के बीच रफाल विमानों के बारे में नया समझौता हो जाता है, जिस अनुसार 126 की जगह केवल 36 युद्धक विमान पूर्ण रूप से तैयार खरीदे जाएंगे। इसे अंतर-सरकार समझौते (ढ्ढत्र्र) के रूप में जाना जाता है।
26 जनवरी, 2016: भारत व फ्रांस एक मैमोरेंडा आफ अंडरस्टैंडिंग (समझौता विज्ञप्ति –रूह्र) पर हस्ताक्षर करते हैं।
23 सितंबर, 2016: अंतर-सरकार समझौते पर हस्ताक्षर होते हैं।
18 नवंबर, 2016: विवाद होने पर सरकार संसद में बताती है कि प्रत्येक रफाल युद्धक विमान की कीमत लगभग 670 करोड़ रुपये है तथा सभी 2022 तक प्राप्त हो जाएंगे।
31 दिसम्बर, 2016 : ‘दासों ऐवियेशन’ ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में बताया कि 36 रफाल विमानों की कीमत 60,000 करोड़ रुपये का भुगतान हुआ है। इस अनुसार एक जहाज की कीमत 1667 करोड़ रुपये बनती है जो कि 18 नवंबर 2016 को संसद में बताई गई कीमत 670 करोड़ रुपये से लगभग ढाई गुना है।
13 मार्च, 2018 : 36 रफाल युद्धक विमानों की खरीद संबंधी तथा इस पर आई लागत के बारे में एक जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में डालकर मांग की गई कि इसकी स्वतंत्र व निष्पक्ष जांच के निर्देश दिए जाएं।
13 जुलाई, 2018 : रिलायंस डिफैंस लिमिटिड ने ऑफसैट भागीदार के रूप में समूचे सौदे में से 50 प्रतिशत अर्थात 30,000 करोड़ का सामान बनवाने के लिए ‘दासों ऐवियेशन’ से मिल कर नागपुर के निकट मिहान में ‘दासों-रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटड’ का नींव पत्थर रखा।
5 सितंबर, 2018: सुप्रीम कोर्ट ने उपरोक्त जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति दी।
18 सितंबर, 2018: सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका, जिसमें रफाल विमान पर रोक की मांग की गई पर सुनवाई आगे डाल दी।
10 अक्तूबर, 2018: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सकार को निर्णय लेने की विधि के बारे में सभी कुछ सीलबंद लिफाफे में देने के लिए कहा।
24 अक्तूबर, 2018: बी.जे.पी. के भूतपूर्व मंत्रियों यशवंत सिन्हा व अरुण शोरी ने प्रसिद्ध वकील प्रशांत भूषण से मिल कर, रफाल युद्धक विमान सौदे के बारे में केस दर्ज करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
31 अक्तूबर, 2018: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया कि वह 10 दिन के भीतर 36 रफाल युद्धक विमानों के दामों के बारे में जानकारी सीलबंद लिफाफे में दे।
12 नवंबर, 2018: केंद्र सरकार ने 36 रफाल युद्धक विमानों के दामों व निर्णय लिए जाने की प्रक्रिया आदि से संबंधित सभी दस्तावेज व जानकारी, सुप्रीम कोर्ट को दी।
14 दिसम्बर, 2018: सुप्रीम कोर्ट ने कोर्ट की निगरानी में जांच किए जाने के बारे में निर्णय आरक्षित कर लिया।
14 दिसम्बर, 2018: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निर्णय लेने की विधि के बारे में संदेह का कोई अवसर नहीं तथा उसने इस सौदे से संबंधित केस दर्ज करके सीबीआई से जांच करवाने के बारे में डाली गई याचिकायें रद्द कर दीं।
उपरोक्त समूचे घटनाक्रम पर नजर डाली जाए तो पता लगता है कि कहीं न कहीं कोई बड़ी गड़बड़ जरुर हुई है, जिसे छुपाने के लिए सरकार द्वारा निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। संसद में बताई गई एक युद्धक विमान की कीमत 670 करोड़ से बढक़र ढाई गुना अर्थात 1667 करोड़ रुपये कैसे हुई इसके बारे में कोई भी संतीषजनक उत्तर नहीं। फिर सुप्रीम कोर्ट के 14 दिसंबर के फैसले से प्रतीत होता है कि सब कुछ ठीक-ठाक है। परंतु बोफोर्स तोप घोटाले, जिससे राजीव गांधी की सरकार जो 404 सदस्यों का रिकार्ड-तोड़ बहुमत लेकर बनी थी, के ऐसे पैर उखड़े थे कि न केवल 1989 में कांग्रेस को पराजित कर श्री वी.पी. सिंह की सरकार बल्कि, उसके बाद से कांग्रेस खुद बहुमत प्राप्त करके सरकार नहीं बना सकी। चाहे उसकी इस दुर्दशा का कारण तो उस द्वारा अपनाई गई पूंजीवादी-जागीरदार व कारपोरेट समर्थक जन-विरोधी नीतियां थी, परंतु बोफोर्स घोटाले का भूत अभी तक, भी कांग्रेस का पीछा नहीं छोड़ रहा। उस घोटाले का पर्दाफाश, मशहूर खोजी पत्रकार, चित्रा सुब्रमणयम,ने अपनी  जान जोखिम में डालकर प्रसिद्ध अखबार ‘द हिन्दू’ में एन.राम के संपादक काल में किया था। उसी अखबार में अब एन.राम द्वारा रफाल विमान सौदे संबंधी फाइलों में से टिप्पणीयां व उनके भाग 8 फरवरी व 13 फरवरी को छाप कर मोदी व उसके मंत्रियों के भीतर खलबली मचा दी है।
8 फरवरी 2019 को ‘द हिन्दू’ में छापी गई फाइल की नोटिंग के अनुसार दिनांक 24 नवंबर, 2015, रक्षा खरीद कमेटी से जुड़े उप-सचिव श्री एस.के. शर्मा ने लिखा, ‘‘कि हम प्रधानमंत्री कार्यालय को सलाह दें कि कोई भी अधिकारी जो भारतीय बातचीत वाली टीम का भाग नहीं, समानांतर रूप में फ्रांस सरकार के अधिकारियों से बातचीत करने से गुरेज करे। यदि फिर भी प्रधानमंत्री कार्यालय को रक्षा मंत्रालय की टीम द्वारा की जा रही बातचीत पर विश्वास नहीं तो प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा इस मामले में संशोधित विधि उपयुक्त स्तर पर अपनाकर बातचीत की जा सकती है।’’ इस नोट में यह भी लिखा गया है कि ‘‘फ्रांस के रक्षा मंत्री के कूटनीतिक सलाहकार व प्रधानमंत्री (मोदी) के सह-सचिव के बीच बातचीत,रक्षा मंत्रालय द्वारा गठित की गई भारतीय बातचीत टीम (ढ्ढठ्ठस्रद्बड्डठ्ठ हृद्गद्दशह्लद्बड्डह्लद्बठ्ठद्द ञ्जद्गड्डद्व-ढ्ढहृञ्ज) द्वारा चलाई गई औपचारिक बातचीत के समानांतर कार्यवाही है तथा ऐसी समानांतर बातचीत हमारे देश के हितों को क्षति पहुंचा सकती है क्योंकि फ्रांसीसी पक्ष ऐसी बातचीत को अपने हितों में उपयोग करने का लाभ ले सकता है, जिससे भारतीय बातचीत टीम की स्थिति कमजोर होती है। इस केस में ऐसा ही घटा है।
इस नोट पर 24-11-2015 को ही सह-सचिव व हथियार प्राप्ति मैनेजर (एयर) तथा डाईरेक्टर जनरल ने भी हस्ताक्षर किए थे तथा अंत में तत्कालीन रक्षा सचिव जी. मोहन कुमार ने अपने हाथ से लिखकर तत्कालीन रक्षा मंत्री श्री मनोहर पारिकर को भेजा था कि, ‘‘रक्षा मंत्री जी, कृपा पूर्वक देखें। यह आशा की जाती है कि प्रधान मंत्री कार्यालय द्वारा ऐसी बातचीत से परहेज किया जाए क्योंकि इससे हमारी बातचीत की स्थिति बड़े गंभीर रूप से कमजोर होती है।’’
उपरोक्त रिपोर्ट के छपने के साथ ही 8 फरवरी को संसद में शोर मच गया तथा रक्षा मंत्री श्रीमती निर्मला सीतामरण जो सब कुछ संसद से भी छिपा कर रख रहीं थीं, ने ‘द हिन्दू’ अखबार की पत्रकारिता के स्तरीय होने पर ही प्रश्न उठाते कहा कि उसने रक्षा मंत्री (श्री मनोहर पारिकर) का नोट क्यों नहीं छापा व उसी दिन पूरी तरह छिपा कर रखे गए उस नोट के साथ मनोहर पारिकर का नोट भी सारे मोदी भक्त चैनलों व समाचार-पत्रों का शीर्षक बन गया यह नोट इस तरह है- ‘‘ऐसा प्रतीत होता है कि प्रधानमंत्री कार्यालय तथा फ्रांस के राष्ट्रपति का कार्यालय इस मामले की प्रगति का निरीक्षण कर रहे हैं, जो मामला दोनों के बीच हुई उच्चस्तरीय बातचीत का परिणाम है। नोट का पैरा नं. 5 अति प्रतिक्रिया प्रतीत होता है। रक्षा सचिव प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव से बातचीत करके समस्या का समाधान कर लें।’’ इस नोट से जो विधि खरीद के लिए निर्धारित की गई थी, उसकी भी धज्जियां उड़ती हैं। प्रधान मंत्री, निरीक्षण के लिए अपने रक्षा मंत्री या रक्षा सचिव से मामले की प्रगति के बारे में तो पूछ सकते हैं परंतु उनका कार्यालय फ्रांस से कीमतों व अन्य मामलों पर बातचीत करने का कोई अधिकार ही नहीं रखता। बहुत से अन्य समाचार-पत्रों ने भी रक्षा मंत्री के बचाव वाले नोट का, उल्टा उनके ही विरुद्ध उपयोग किया है तथा यह नोट 24-11-2015 से लगभग डेढ महीना बाद 11-01-2016 को लिखा गया।
इसी अखबार ‘द हिन्दू’ ने 13 फरवरी 2019 को खरीद सौदे में लगे 7 सदस्यों में से 3 डोमेन विशेषज्ञों (अपने-अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ) द्वारा लिखे गए नोट भी छाप दिए। इन विशेषज्ञों ने युद्धक विमानों की कीमतों के बारे में, दासों कंपनी की ओर से फ्रांस सरकार द्वारा प्रभुसत्ता गारंटी या बैंक गारंटी आदि से संबंधित 8 पृष्ठों का पूरा विस्तारित नोट बनाया था ताकि भारतीय हित सुरक्षित रहें। परंतु प्रधानमंत्री कार्यालय के हस्तक्षेप के कारण फ्रांस सरकार से ऐसी कोई भी गारंटी लेने के बिना ही केवल दिलासा-पत्र ही लिया गया। जिससे यदि दासों कंपनी जिसने भारत से पहले पैसे लेकर, बाद में समझौते की किन्हीं मदों को लागू नहीं करती तो भारत पहले उस कंपनी के विरुद्ध लंबी कानूनी लड़ाई लड़ेगा तथा सब कुछ हक में होने के बावजूद भी यदि दासों ऐवियेशन उन मदों को लागू नहीं करती तो ही फ्रांस सरकार हस्तक्षेप करेगी। जबकि 7 में से 3 विशेषज्ञों द्वारा पूर्ण रूप से जोर दिया गया था कि फ्रांस सरकार समझौते की हर मद को लागू करवाने के लिए पूर्ण रूप से प्रतिबद्ध हो। भ्रष्टाचार विरोधी सुझाव भी 3 विशेषज्ञों द्वारा लागू करवाने के लिए लिखा गया। परंतु अन्य 4 सदस्यों ने जो इन विषयों के विशेषज्ञ नहीं, द्वारा इन आपत्तियों की परवाह किए बिना ही समझौता करवा दिया गया। कीमतों के मामले में भी रफाल यद्धक विमानों में जो भारत के लिए आवश्यक 13 विशेष बढ़ौत्तरियां थीं, उनके लिए बुनियादी कीमत पर जितनी राशि 126 विमानों के लिए थी, उतनी ही 36 पर दे दी गई, जिसका भी इन विशेषज्ञों ने लिखित रूप में तर्कों सहित विरोध किया परंतु इन्हें स्थाई खर्चे कह कर देश का पैसा लूटा दिया।
सुप्रीम कोर्ट को अंधेरे में रखा गया।
उपरोक्त सभी सामने आए तथ्य, सरकार द्वारा सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को दिए गए दस्तावेजों-जानकारी का भाग नहीं थे, जो अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा लंबित समीक्षा-याचिका का भाग बनने की संभावना है। सरकार, विशेष रूप से प्रधानमंत्री व उसका कार्यालय किसी बड़े घोटाले का भाग होने के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट को गुमराह करने का भी दोषी है। पत्रकारों के निष्पक्ष पक्षों द्वारा प्रधानमंत्री पर स्पष्ट रूप में दोष लगाए जा रहे हैं। यहां तक कि अपने आपको निष्पक्ष कहाने वाले पत्रकार श्री शेखर गुप्ता जो अप्रत्यक्ष रूप में बहुत से मामलों में मोदी जी का पक्ष लेते हैं, ने भी अपनी 3-4 विडियोज में दो बातों पर स्पष्ट रूप में मोदी जी को कोसा है- पहली बात, 126 विमानों की जगह बिना मांग किए ही 36 विमानों की बात कैसे आई। दूसरा, हिंदुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड (॥्ररु) जैसी अनुभवी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी की जगह बिना किसी उपकरणों के तथा बिना किसी आवश्यक स्टाफ के अनिल अंबानी की हवा में लटकती नाम-निहाद कंपनी रिलायंस डिफैंस लिमिटेड को ऑफसैट भीगादार कैसे बना लिया गया। सरकार का यह कहना कि दासों कंपनी ने खुद इस कंपनी को भागीदार बनाया भी सत्य नहीं। जिसका सबसे बड़ा प्रमाण फ्रांस के तात्कालिक राष्ट्रपति फ्रांसुवा औलांद का 22 सितंबर 2018 का यह ब्यान है कि रिलायंस डिफैंस लिमिटेड को ऑफसैट भागीदार बनाना हमारी मजबूरी थी क्योंकि यह भारत की शर्त थी। बिल्कुल स्पष्ट है कि देश-पक्षीय शर्ते छोडक़र अनिल अंबानी को 30,000 करोड़ रुपये लोगों के टैक्सों में से देना ही मुख्य कार्य था।
लगभग समूचा विपक्ष ही इस सौदे पर मोदी तथा उसकी सरकार को घेर रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष तो सरेआम ही कह रहा है कि ‘‘चौकीदार चोर है’’ परंतु सरकार में भागीदार व भारतीय जनता पार्टी की सबसे निकट सैद्धांतिक भागीदार शिव सैना ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ में 9 फरवरी को यहां तक लिखा है कि – ‘‘भाजपा के शासन में राष्ट्रवाद व देशभक्ति की परिभाषायें ही बदल दी गई हैं। जो रफाल सौदे का गुणगान करते हैं, वे देशभक्त तथा जो प्रश्न करते हैं वे देशद्रोही।’’ उन्होंने और भी लिखा है कि, ‘‘प्रधान मंत्री यह बताने का कष्ट करें कि रफाल सौदे का उद्देश्य हवाई सैना को मजबूत करना था या फिर एक उद्योगपति को।’’
प्रतीत होता है कि रफाल सौदे की और अधिक परतें भी खुलेंगी तथा यह सरकार के गले की हड्डी सिद्ध होगा। उपरोक्त तथ्य दर्शाते हैं कि इस सौदे में प्रधानमंत्री कार्यालय का प्रत्यक्ष हस्तक्षेप स्थापित नियमों के विरुद्ध है तथा मंदी भावना से प्रेरित है। यह ‘‘चौकीदार के चोर होने’’ को स्पष्ट रूप में स्थापित करता है।

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