मंगत राम पासला
साल 2019 में होने जा रहे लोकसभा चुनावों के लिए लगभग सारे ही राजनीतिक दलों ने तैयारियां आरम्भ कर दी हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र भाई मोदी तथा उनकी पार्टी भाजपा द्वारा हर हालत में पुन: सत्ता पर कब्जा करने के लिए तमाम संसाधन जुटा कर हर तरह के दावपेंच लागू करने में और ज्यादा तेजी ला दी है। बेशक, लोकतांत्रिक राज्य व्यवस्था में सब राजनैतिक पक्षों को चुनावों में विजय प्राप्त करने के लिए हर सम्भव, उचित तथा संवैधानिक प्रयत्न करने का पूरा-पूरा अधिकार है। परन्तु जिस ढंग से आर.एस.एस द्वारा धर्म आधारित हिन्दु-राज्य स्थापित करने के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संघ परिवार द्वारा लोकतांत्रिक तथा धर्म निरपेक्षता की जीवन मर्यादाओं को पैरों तले रौंद कर समाज में सांप्रदायिकता, असहनशीलता, अविश्वास तथा जनता के मन में दुर्भावना वाला वातावरण निर्मित किया जा रहा है, उससे भारतीय समाज की एकजुटता तथा भातृभाव वाली सांझ पूरी तरह तबाह होने के आसार बनते जा रहे हैं। संघ के सांप्रदायिकता भरपूर फासीवादी ऐंजडे के विरूद्ध उठ रही आवाजों को अंधराष्ट्रवाद तथा प्रतिक्रियावादी विचारधारा के शोर शराबे तथा सरकारी तंत्र के दुरुपयोग द्वारा डरा-धमका कर दबाने के कुप्रयास किए जा रहे हैं। यह सब, भारतीय आवाम तथा लोकतंत्र के लिए बेहद चिन्ताजनक हद तक खतरनाक है।
आर्थिक मोर्चे पर मोदी सरकार पूरी तरह से असफल रही है। देश के इजारेदार पूंजीपतियों के साथ-साथ विदेशी लुटेरों को भी जनता के खून-पसीने की कमाई तथा तमाम प्राकृतिक संसाधनों का अन्धाधुंध दोहन करने की खुली छूट देकर मालामाल कर दिया गया है। तथाकथित मोदी विकास माडल ने मंहगाई बढ़ाने के साथ-साथ बेरोजगारी व रोजगार छिनने की दर में खासी वृद्धि कर दी है। कृषि संकट के समाधान की ओर अग्रसर होने के बजाए, यह अपेक्षाकृत और ज्यादा गम्भीर तथा भयावह स्तर तक चिंताजनक बनता जा रहा है, इसके परिणामस्वरूप ऋण के बोझ तले दबे लाखों खेत-मजदूर व छोटे मंझोले किसान आत्महत्याएं कर चुके हैं। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना ने किसानों को राहत प्रदान कर कृषि संकट के समाधान की अपेक्षा बीमा कम्पनियों के वारे-न्यारे जरूर कर दिए हैं। नोटबन्दी के पश्चात् बाजार में प्रचलित मुद्रा का (500-1000 के नोट) का कुल मिला कर 99 प्रतिशत पुन: बैकों में जमा होकर काले धन के सौदागरों की काली कमाई, कानूनी मान्यता पा कर सफेद हो चुकी है। दर्जनों लोगों के प्राणों की आहुति लेकर तथा उनके परिवारों को अथाह आर्थिक तथा सामाजिक संकटों में धकेल कर मोदी सरकार ने देश की जनता पर नोटबन्दी जैसे घातक रूप से छुपकर किए प्रहार द्वारा बड़ा विश्वासघात किया है। नोटबंदी के अलावा जी.एस.टी. लागू करके छोटे व्यापारियों व मध्यम उद्योगों की कमर तोड़ कर उन्हें बन्द होने की ओर धकेल दिया है। इससे आम उपभोक्ता के सिर पर और अधिक आर्थिक बोझ लाद दिया गया है। इस के चलते, भाजपा नेताओं को शायद अनुभव हो गया लगता है कि पुन: सत्ता हासिल करने के लिए आर्थिक क्षेत्र में प्राप्तियों के बारे में नई जुमलेबाजी अथवा भ्रामक आंकड़ेबाजी से जनता को गुमराह कर पाना आसान नहीं रहा है। इसीलिए अपनी ताकत को, देश की जनता को साम्प्रदायिक आधार पर विभाजित करने पर लगाया जा रहा है। ताकि देश कि बहुसंख्यक हिन्दु समाज में अन्य धर्मों को मानने वालों के खिलाफ नफरत फैला कर बहुसंख्यक जनता का ध्रुवीकरण कर वोट हासिल किए जा सकें। इसके लिए भाजपा नेता अब साफ स्पष्ट रूप में हिन्दुत्व का राग अलाप कर, मुसलमान समुदाय तथा अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों, दलित समाज, महिलाओं व पिछड़े वर्गों के खिलाफ घृणा के वातावरण के निर्माण के कुत्सित प्रयास कर रहे हैं।
संघ तथा भाजपा के अधिकतर नेतागण बिना किसी तथ्य के तर्क देकर, यह सिद्ध करने का प्रयत्न कर रहे हैं कि आजादी से पहले तथा बाद में हिन्दुओं की अवहेलना की गई तथा अन्य मजहबों को मानने वालों का तुष्टिकरण किया गया है। यदि संघ का यह तर्क हिन्दु धर्म में आस्था रखने वाले शासकों की संख्या के बारे में है तो इससे बड़ा मिथ्या प्रचार शायद ही कोई और हो सकता है। पंडित नेहरू, अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर नरेन्द्र मोदी तक (डा. मनमोहन सिंह को अपवाद स्वरूप छोड दें) तो तकरीबन सारे ही प्रधानमंत्री की कुर्सी पर हिन्दु ही विराजमान रहे हैं। यह बात दीगर है कि मोदी जी के हिन्दु धर्म वाले चौखटे में वे सब पूरे फिट नहीं बैठते हैं। यदि आर.एस.एस की हिन्दु-अवहेलना का अर्थ, आर्थिक सामाजिक शोषण से है तो निश्चय ही एक तरफ यहां, 80 प्रतिशत हिन्दु आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा बेरोजगारी, गरीबी, भुखमरी व शिक्षा व्यवस्था के सहज व समान रूप से उपलब्ध ने हो पाने से अवहेलना, अपमान का भुक्तभोगी है। वहीं दूसरी ओर देश भर में जनसंख्या के अनुपात में अपेक्षाकृत ज्यादा बड़ी तादाद में मुसलमान, ईसाई तथा सिक्ख भी शामिल हैं, का, भारतीय शासक बिना किसी धार्मिक भेदभाव के गत 70 सालों से समान रूप से शोषण कर रहे हैं। हकीकत यह है कि संघ परिवार ऐसे तथ्यविहीन तर्कहीन मुद्दों को उठा कर, जनमानस को सांप्रदायिक आधार पर विभाजित कर चुनावों में वोट हासिल कर लाभ उठाना चाह रहा है।
राममन्दिर-बाबरी मस्जिद विवाद माननीय उच्चतम न्यायालय के विचाराधीन है। सब पक्षों को बिना किसी हील-हुज्जत के अदालत के निर्णय को स्वीकार करने के लिए तैयार किया जा सकता है। हमारे देश में पहले बहुत सारे धर्मस्थान हैं तथा आवश्यकता होने पर जन-सहयोग से और भी बनाए जा सकते हैं। लेकिन भाजपा बहुसंख्यक जनमानस में मुसलमानों के प्रति घृणा पैदा करके हिन्दुओं के वोट हड़पना चाहती रही है, चाह रही है। इस संकीर्ण हित को साधने के लिए किसी कानून अथवा अदालत के सर्वमान्य निर्णयों को ठेंगा दिखाते हुए अयोध्या में बाबरी मस्जिद को जोर-जबरदस्ती से ध्वस्त कर उस जगह पर मन्दिर बनाना भाजपा को वोटों के लिहाज से ज्यादा लाभप्रद लगता है। राम मन्दिर/बाबरी मस्जिद विवाद में आज के समय में, आम मेहनत करके परिवार पालने वाले निरीह/निर्दोष मुसलमानों को अपराधी बनाया जा रहा है। दशहरे के अवसर पर संघ प्रमुख मोहन भागवत द्वारा दिया गया ब्यान कि मोदी सरकार को उच्चतम न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा करने की बजाए अयोध्या में राममन्दिर निर्माण के लिए अध्यादेश जारी कर कानून बनाना चाहिए ताकि राममन्दिर निर्माण के काम को तुरन्त शुरू किया जा सके ने पुन: साफ-स्पष्ट तौर से जग-जाहिर कर दिया है कि संघ परिवार को किसी प्रकार की धार्मिक आस्था निर्वाह की अपेक्षा राममन्दिर निर्माण की आड़ में वोट हासिल करना ज्यादा श्रेयस्कर लगता है।
आर्थिक क्षेत्र में, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों तथा इजारेदार पूंजीपतियों की हित पूरक आर्थिक नीतियां, पूर्व की सरकारों की अपेक्षा और ज्यादा भक्तिभाव से लागू करने से उत्पन्न नतीजों से नित्य-प्रति बढ़ रही मंहगाई को काबू में करने व रोजगार न दे पाने जैसी असफलताओं के कारण मोदी सरकार के प्रति आवाम में पैदा हो रही बेचैनी, अविश्वास की भावना को भांप कर संघ प्रमुख के लिए आगामी लोकसभा चुनावों के सम्भावित परिणामों को ध्यान में रखते हुये अब और इन्तजार करना कठिन होता जा रहा है। यह है, धर्म की राजनीतिक हित पूर्ति के लिए दुरूपयोग की सबसे भद्दी उदाहरण, जिस का यह जनूनी नेतागण गर्व का बखान करते हुए तनिक भी लज्जा अनुभव नहीं करते। ”गाय रक्षाÓÓ का मुद्दा भी संघ द्वारा एक खास मंसूबे के तहत ही उछाला जा रहा है। गौधन की उपयोगिता के कारण इस प्रति भारतीय जन मानस विशेष तौर पर हिन्दु धर्म में आस्था रखने वालों के मन—मस्तिष्क में सदियों से सहज उत्पन्न आदर भाव कोई नई बात नहीं है। भारतीय संविधान के अनुसार तथा आम प्रचलन के अनुसार भी मनभाता खान-पान हर व्यक्ति का निजी अधिकार है। परन्तु गाय-मांस के मिथ्या आरोप लगा कर संघी सेनाओं (बजरंग दल, गाय रक्षक दल, विश्व हिन्दु परिषद इत्यादि) द्वारा धार्मिक अल्पसख्यकों पर प्राण घातक आक्रमण प्रयोजित किए गए, जिनमें कई र्निदोष लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। सम्प्रदाय तुष्टिकरण के आधार पर ही उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश में, किसी भी रूप में निर्वाचित हुए बिना ही साधु-संतों को मंत्री पदों पर सुशोभित करना तथाकथित नैतिकता की दुहाई देने वाली भाजपा ने एक और अनैतिक ही नहीं, गैर कानूनी कारनामा भी कर दिखाया है।
भाजपा का नारी सम्मान का ढंकोसला भी तब जगजाहिर हो गया जब एक तरफ सबरीमाला मन्दिर में महिलाओं के बिना किसी भेदभाव के प्रवेश कर पाने के सम्बन्ध में उच्चतम न्यायालय के निर्णय का स्वागत किया तथा दूसरी तरफ केरल में भाजपा, महिलाओं के मन्दिर में प्रवेश कर पाने के मिले अधिकार के विरोध में हिंसक भीड़ जुटा रही है। यह मनुवादी वर्णव्यवस्था का अनुसरण है, जिसके अनुसार पशु, दलित तथा नारी सिर्फ ताडऩ (मार खाने) के ही अधिकारी हैं।
आने वाले दिनों में भारतीय राजनीतिक क्षेत्र में विचाराधीन यक्ष प्रश्न मोदी अथवा राहुल का प्रधानमंत्री पद पर चुना जाना, तथा न ही किसी दल अथवा व्यक्ति की धर्म के प्रति आस्था से सम्बधित होना चाहिए। वास्तविक मुद्दा जनता को तबाह/बर्बाद कर रही आर्थिक नीतियां बनाम जन-पक्षीय आर्थिक व्यवस्था, धर्मनिरपेक्षता बनाम धार्मिक कट्टरता भरपूर जनूनी राज, लोकतंत्र बनाम तानाशाही, सांम्प्रदायिक सद्भाव बनाम सांम्प्रदायिक दंगे-फसाद, आपसी सहयोग व मेलजोल बनाम असहनशीलता तथा बेरोजगारी, जनता की अदालत में विचाराधीन होने चाहियें।