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देश भर में 13 जनवरी कानून की प्रतियां जलाने, 18 को महिला किसान दिवस, 23 को सुभाष जयंती और 26 जनवरी को किसान व ट्रैक्टर परेड की तैयारी तेज

देश भर में 13 जनवरी कानून की प्रतियां जलाने, 18 को महिला किसान दिवस, 23 को सुभाष जयंती और 26 जनवरी को किसान व ट्रैक्टर परेड की तैयारी तेज

नई दिल्ली, 8 जनवरी (संग्रामी लहर ब्यूरो)- जैसे-जैसे केन्द्र सरकार द्वारा कानून वापस न लेने के विरुद्ध लोगों का गुस्सा बढ़ रहा है, रेवाड़ी की गंगाईचा सीमा पर एक और विरोध का केन्द्र प्रारम्भ हो गया है और मानेसर का विरोध मजबूत होता जा रहा है। वर्किंग ग्रुप ने इस बीच 13, 18, 23 व 26 जनवरी को व्यापक गोलबंदी की अपील की है।

एआईकेएससीसी के वर्किंग ग्रुप ने कहा है कि तीन खेती के कानून को रद्द कराने का ये संघर्ष बुनियादी रूप से पर्यावरण, नदियों, वन संरक्षण तथा देश की बीज संप्रभुता की रक्षा करने का भी संघर्ष बन गया है। अगर इन कानूनों का अमल हुआ तो कारपोरेट व विदेशी कम्पनियां खेती के बाजार व कृषि प्रक्रिया पर कब्जा कर लेंगी और इन पर हमले बढ़ जाएंगे।

वर्किंग ग्रुप ने कहा है कि इस संघर्ष की जीत से देश को बहुत सारे लाभ होंगे, खासतौर से देश की खाद्यान्न सुरक्षा का। कारपोरेट का हित गरीबों को खाना देने में नहीं है, बल्कि खेती से मुनाफा कमाने का है। सवाल केवल सरकारी खरीद और राशन का नहीं, इसी साल मोदी सरकार ने तय किया है कि गेहँू, चावल, ज्वार, बाजरा, जौ सबसे शराब बनाने की प्रक्रिया तेज की जाए ताकि उसकी पेट्रोल, डीजल में मिलावट की जा सके। गरीबों का खाना अमीरों का ईंधन बनेगा।

वर्किंग ग्रुप के अनुसार यह आन्दोलन सक्रिय साम्प्रदायिक ताकतों के हमलों के मुकाबले में जन एकता व साम्प्रदायिक सद्भाव का केन्द्र तो बन ही रहा है, साथ में गुरुद्वारों की सेवा संस्कृति का जो संदेश लोग ग्रहण कर रहे हैं वह कुर्बानी देने और पड़ोसी के लिए, खासातौर से वे जो पीड़ा में हैं और संघर्ष कर रहे हैं, एक गहरा लिहाज रखने का है। यह अपने हित तक सीमित रहने की कारपोरेट संस्कृति के विपरीत है।

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वर्किंग ग्रुप एआईकेएससीसी ने कहा है कि खेती करने वालों के बीच व्यापक व गहरी एकता का जो माहौल बना है यह सिंचाई के पानी के बंटवारे को लेकर जो क्षेत्रीय भावनाएं जागृत की जा रही थीं, उन्हें हल करने और जल स्रोतों को कारपोरेट लूट से बचाते हुए खेती व जनता के विकास के लिए ज्यादा बेहतर इस्तेमाल करने की जमीन तैयार करेगा। नर्मदा व अन्य बड़े बांधों का पानी खेती में न दिये जाने और अन्तर्राज्यीय जल विवाद इसके उदाहरण हैं।

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