दिन-ब-दिन ट्रैकमेनों की हालत बद से बदतर होती जा रही है। आये दिन ट्रैकमेन रेल की पटरियों पर मरने को मजबूर हैं। वर्ष 2012-13 से 2015-16 में प्रतिवर्ष 600 ट्रैकमेन ट्रेन दुर्घटना के शिकार हुए हैं। वर्ष 2017-18 व 2018-19 में प्रतिवर्ष तकरीबन 1000 ट्रैकमेन ट्रेन दुर्घटना के शिकार हुए हैं। यानी प्रतिदिन 3 ट्रैकमेन रन ओवर से मुत्यु के शिकार होते हैं। यह आंकड़ा अपने आप में अचंभित करने वाला है।
ट्रैकमेन का जोखि़म भरा काम
ट्रैकमेन में दो विभाग आते हैं, एक मेन्टेनन्स स्टाफ और दूसरा पेट्रोलिंग स्टाफ। ट्रैकमेन का काम कठिन है। उन्हें 25 किलो का वकान लेकर 20 किलोमीटर तक रेल पटरी पर चलना पड़ता है।
ट्रैकमेन न केवल पटरी के नट बोल्ट ठीक करता है, न केवल पटरियों के आसपास के पत्थरों को साफ या लेवल में करता है, बल्कि पटरी का एलाइनमेंट और गेजिंग भी करता है। उसका यह काम बहुत महत्वपूर्ण है। गलत गेजिंग से गाड़ी गिर सकती या पटरी से उतर सकती है। यह कार्य मिलीमीटर या इंच के मेजरमेन्ट से किया जाता है। ट्रैकमेन को चलती हुई ट्रेन की नि$गरानी भी करनी पड़ती है।
भारतीय रेल में 4 लाख ट्रैकमेनों की जरूरत है, लेकिन इनकी संख्या बहुत ही कम है। ट्रैकमेनों की भर्ती समयानुसार न करने की वजह से मौजूदा ट्रैकमेनों के ऊपर सुपरवाइजर की तरफ से ज्यादा काम करने का दवाब रहता है। ट्रैकमेनों की कमी को भरने के लिए सरकार कॉन्ट्रैक्ट पर अप्रशिक्षित गैंगमेनों को नियुक्त कर रही है। इससे काम की गुणवत्ता में बहुत फर्क पड़ता है। अप्रशिक्षित गैगमेनों में महिलाएं भी शामिल हैं। पिछले कुछ वर्षों में जरूरत के अनुसार नयी भर्ती ना करने के कारण ट्रैकमेनों की संख्या घटी है।
पेट्रोलिंग के लिये दो लोग होने चाहिएं, लेकिन एक ही व्यक्ति से यह काम करवाया जाता है। नियमों के अनुसार पेट्रोलिंग करने वालों को ज्यादा से ज्यादा 2 किलोमीटर चलना चाहिए, लेकिन उनसे 20 किलोमीटर की दूरी तक पेट्रोलिंग करवाई जाती है! इस काम के लिए अनुभवी ट्रैकमेन भर्ती किये जाने चाहियें, परन्तु पेट्रोलिंग के लिये नये अप्रशिक्षित लोग भेजे जाते हैं।
नियमों के अनुसार 8 घंटे काम करना चाहिये। लेकिन 10 से ज्यादा घंटे काम करवाया जाता है। भोजन करने का स्थान रेल लाईन की बगल में ही होता है। धूप, गर्मी, ठंडी या बारिश में खुले असमान के तले ही उनको भोजन करने को मजबूर होना पड़ता है।
भोजन का अवकाश 2 घंटे का होता है, जिसमें मकादूरों का शारीरिक आराम करने का समय भी शामिल है। लेकिन वे रेल लाईन के आसपास खुले आसमान के नीचे ही आराम करने को मजबूर हैं। बहुत सारे ट्रैकमेनों को सुरक्षा के लिए जैकेट और जूते नहीं मिलते हैं। उन्हें केरोसिन लैंप दिया जाता है, जिससे 5 फीट के आगे नहीं दिखता है। इसलिये उनकी मांग है कि उन्हें एलईडी लैंप मिलने चाहियें।
बिलकुल ऐसी ही परिस्थिति महिला ट्रैकमेनों की है। न तो उचित शौच की व्यवस्था है और न ही सुरक्षा से कपड़े बदलने की सुविधा का प्रावधान है। गर्भावस्था में महिलाओं के लिये पुरुषों से अलग कमरे की सुविधा होनी चाहिये। साथ ही उसके नवजात शिशु को स्तनपान के लिये सुनिश्चित स्थान मुहैया करवाना चाहिये। अभी ऐसी कोई भी सुविधाएं प्रदान नहीं की जाती हैं।
एक दिन में कितना काम करवाया जायेगा यह सुपरवाइकार या अफसर पर निर्भर रहता है। जैसे कि एक व्यक्ति दिन भर में 3 स्लीपर बदली कर सकता है, परन्तु उससे ज्यादा ही कराया जाता है। साथ ही उसको जोड़ीदार देकर 40 से 50 स्लीपर पैकिंग करवाई जाती है। इससे उसे शारीरिक तथा मानसिक थकान बहुत होती है और अतिनिद्रा की अवस्था में भी काम के स्थान पर कार्यरत रहता है। ऐसी शारीरिक औैर मानसिक स्थिति में यदि सामने से कोई रेल गाड़ी आती है तो ट्रैकमेन खुद का बचाव करने में असमर्थ रहता है और रन ओवर से मृत्यु का शिकार होता है।
सरकार द्वारा ट्रैकमेन को जी.पी.एस. युक्त मोबाईल दिया गया है, जिसके द्वारा जाना जा सके कि वह कर्मचारी कार्य के स्थान पर पहुंचा है या नहीं तथा उसके काम पर निगरानी रखी जा सके। शर्मनाक बात यह है कि रेल पटरियों की मरम्मत के समय जहरीले सांप या बिच्छू के काटने के इलाज के लिए अति आवश्यक दवाइयां मुहैया नहीं कराई जाती हैं।
आज का ट्रैकमेन स्नातक से भी ज्यादा पढ़ा लिखा होता है तथा स्पर्धात्मक दौर में आर.आर.बी. एवं रेलवे की अन्य परीक्षाएं देकर ट्रैकमेन के पद पर भरती होता है लेकिन उसे सेवानिवृत्त होने तक उसी पद पर कार्यरत रहना पड़ता है। जबकि ट्रैकमेन का कार्य बहुत कठिन तथा भारी शरीरिक परिश्रम का होता है, उसे बढ़ती उम्र के साथ राहत वाला तथा कम शारीरिक परिश्रम वाला और अनुभव के अनुसार उसे वरिष्टता वाला काम मिलना चाहिये। लेकिन भारतीय रेल में ट्रैकमेन के लिये इसका कोई प्रावधान नहीं है। वह ट्रैकमेन बतौर नियुक्त होता है और ट्रैकमेन बतौर ही सेवानिवृत्त होता है।
ट्रैकमेन का काम बहुत ही आवश्यक है। इनके वगैर ट्रेन का चलना संभव नहीं हो सकता, परन्तु फिर भी सरकार की तरफ से इनके काम को कोई महत्व नहीं दिया जाता है। यह जानते हुए कि इनके काम में शारीरिक श्रम का ज्यादा इस्तेमाल होता, इनके लिए रेलवे कैंटीन की सुविधा होनी चाहिए, जहां उनको पौष्टिक तथा ज्यादा कैलोरी वाला आहार, जैसे कि मांस, मछली, दूध, इत्यादि मुनासिब दाम में मिले।
ट्रैकमेन तो भारतीय रेल की रीढ़ की हड्डी के समान हैं। उनके काम के ऊपर रेलवे के हजारों इंजन चालकों और गार्डों की तथा करोड़ों यात्रियों की सुरक्षा निर्भर है। हम सब के हित में है कि वे अपने काम में सुखी रहें, सुरक्षित रहें। लेकिन सरकार को इसकी कोई फिक्र नहीं है।